31 मई, 2021

कट्टेलनी चाची (हिंदी कहानी)

                                                                         कट्टेलनी चाची

 


डॉ.गोमा

सातगाँव, गुवाहाटी

आज 65 साल की उम्र में कट्टेलनी चाची का मर्म बुरी तरह से घायल हो गया। असह्य पीड़ा हुई। ऐसा आभास हुआ कि कोई कलेजे पर निरंतर कुल्हाड़ी मार रहा है। जब शादी हुई थी, तब उनकी उम्र महज 15 साल की थी। तबसे लेकर आज पर्यंत जिस संसारको अपनी मेहनत, ममता और सूझ-बूझ से सँवारा था, आज वही तहस-नहस होने को आमादा था। मातृ-वेदना की गहराई को मापने का कोई पैमाना  नहीं होता। उनका अवसाद भरा चेहरा पारखियों के लिए किसी महाकाव्य से कम नहीं था। उन्होंने उड़ती नज़रों से अपने पति की ओर देखा। उनका चेहरा भी मलीन था। उनके अंदर भी व्यथा रूपी सुनामी की लहरें अपना क़हर बरपा रही है, यह साफ नज़र आ रहा था।

चार बेटे, संतान-रत्न। चारों की शादी हो चुकी थी। अब तक संयुक्त परिवार में गुजारा चल रहा था। सब कमाओ, मिल-बाँटकर खाओ, मुशीबत में साथ निभाओ - परिवार की गाड़ी इसी मंत्र के भरोसे चल रही थी। हल्की तनातनी, मनमुटाव, बहुओं के बीच शीतयुद्ध होते-होते स्थिति बेकाबू हो चली। चाची चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रही थी। उन्होंने आज तक जोड़ना सीखा था। पर इसके विपरीत परिवार टूटने की दिशा की ओर निरंतर अग्रसर हो रहा था। आज चारों अपनी खिचड़ी अलग पकाने को तैयार थे। सारी स्थितिको ताड़ते हुए चाची ने अपने पति से कहा - “हमें स्थिति काबू में रहते ही चारों में संपत्ति का बँटवारा कर देना चाहिए। हमारे पास अब यही एक रास्ता बचा है। 

“ठीक कहा तुमने। शायद इस बिमारी का यही एकमात्र इलाज है। कल मैं पंचों को बुला लाता हूँ“ - व्यथा से भरे शब्दों में कट्टेल चाचा बोले।

पारिवारिक बँटवारे को अंजाम देने के लिए कट्टेलनी चाची के आँगन में पंचायत बैठी। चल-अचल संपत्ति जो भी थी, चारों में बराबर की अनुपात में बँट गई। पुस्तैनी जमीन में कागजी सीमारेखा खिंची गई। सीमा कागज में खिंची जा रही थी, पर कलम से खिंची जा रही हर रेखा शूल की भाँति चाची के मर्म में चुभ रही थी। वे चुपचाप यह दर्द सहने को बाध्य थीं।  

संपत्ति के बँटवारे के बाद पंचायत प्रधान ने चाची की ओर देखते हुए कहा - “चाची, संपत्ति का बँटवारा हो गया। अब बताइए शेष जिंदगी बिताने के लिए किस बेटे-बहू का चुनाव करेंगी? किनके साथ रहना चाहेंगी?”

इस प्रश्न से चाची की तन्द्रा जैसे भंग हो गई। यह एक प्रश्न न होकर मानो उनके लिए एक करारा तमाचा था, जिसके प्रहार से जैसे उनका पूरा तन-बदन झनझना उठा हो। यथार्थ के खुरदरे धरातल पर आते ही उनका हृदय हाहाकार करने लगा। जिन्हें आज तक ममता की छाँव में बड़े यत्न से संभालकर रखा, उन मोतियों का चुनाव करने के दिन भी आएँगे, ऐसा चाची ने कभी सोचा भी न था। ऐसा लग रहा था मानो कोई उनका आँचल तार-तार कर रहा है। मुँह से एक शब्द नहीं फूटा। वे सजल नेत्रों से पास में बैठे हुए अपने बेटों और बहुओं की ओर टुकुर-टुकुर देखने लगीं।

वातावरण में छाई निस्तब्धता को भंग करते हुए प्रधान ने दुबारा पूछा - “बताइए चाची आप और चाचा किसके साथ रहना पसंद करेंगे?”

कुछ पल मौन रहने के बाद बड़े बेटे ने मझले की ओर देखते हुए कहा - “तुम्हारी नौकरी भी है, अम्मा-बाउजी को तुम रख लो।“

 ‘मैं क्यों? मेरे तीन-तीन बच्चे हैं। अभी आय भी कम है। तुम रखो।’- मझले ने तपाक से उत्तर देते हुए अपना फैसला सुनाया।

“युद्धवीर और मानवीर की बातें समझ में आ गई। कर्मवीर, तुम क्या कहते हो ?”- प्रधान ने तीसरे बेटे की ओर लक्ष्य करते हुए पूछा।

कर्मवीर और उसकी पत्नी कुछ मिनट तक दूर जाकर कुछ देर तक आपस में फुसफुसाते रहे। जब वापस आकर अपने स्थान पर बैठ गए, तो पंच प्रधान ने सहज भाव से प्रश्न दोहराया। 

  ‘मैं तो विदेश जा रहा हूँ। आपकी बहू के पाँव भी भारी हैं। मुझे उसे मायके में छोड़कर जाना पड़ेगा। इस स्थिति में मैं क्या कर सकता हूँ, आपलोग ही बता दीजिए।“ - तीसरे बेटे ने परोक्ष रूप में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी। 

   प्रधान ने छोटे बेटे और बहू को लक्ष्य करते हुए कहा - ‘‘तुम दोनों क्या कहते हो?’’

“मैं तो फौजी ठहरा। सरकारी आदेश का गुलाम। कब, कहाँ के लिए निकलने का आदेश मिले, इसका कोई ठिकाना नहीं है। इस हालात में मैं अपने बूढ़े माँ-बाउजी को कहाँ-कहाँ ले फिरूँगा। मेरी मज़बूरी को समझने का प्रयास करें।”

अपने बेटों की मजबूरी से भरे एक-एक शब्दों की रस्सी से कट्टेलनी चाची का कलेजा ऐँठता जा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उनका दम घुटने वाला है। सबके चेहरों को पढ़ने के प्रयास में उन्होंने अपने बेटे और बहुओं की ओर देखा। किसी भी चेहरे में उगते सूरज की नर्म किरणें नहीं दिखाई दे रही थी। सबमें गोधूली साँझ की बढ़ती कालिमा साफ नज़र आ रही थी। 

कट्टेलनी चाची ने कभी अपनी ममता को बाँटने में कोई भेद-भाव नहीं किया। सब पर बराबर लुटाया। सबकी सुरक्षा की चिंता में वे अपनी आयु के तीसरे दहलीज तक आई। खुद की खुशियाँ भुल गईं, संतान को कभी उदास होने नहीं दिया। स्वयं आधे पेट से गुजारा किया, बच्चों को कभी भूखा नहीं रखा। खाना खाते वक्त जब पतीला खाली हो जाता तो कोई पूछता - “माँ तुम क्या खाओगी ?” -तो हँसते हुए कहती - “मैंने पड़ोस की मीना के यहाँ दिन ढले कुछ खाया था, मुझे बिल्कुल भी भूख नहीं है” - कहते हुए उनका चेहरा ऐसे खिल उठता, सुनने वाले को पता ही नहीं चलता कि वे भूखे पेट रात गुजारने जा रही हैं। चाचा जब यह ताड़ जाते कि पतीले में खाना कम है, तो कहते - “तुम लोग खा लो आज मुझे भूख नहीं है।“ उन्होंने कभी कोई शिकायत नहीं की। 

एक जोड़े कपड़े से साल गुजारा लेकिन कट्टेल दंपति ने बेटों को कोई कमी नहीं होने दी। धूप, वर्षा आँधी की परवाह किए बिना ब्रह्मपुत्र नदी किनारे की खेती में मेहनत करते रहे। बेटे स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई करते रहे। इस परिवारिक उन्नति में पति की जिम्मेदारी का भार बाँटने में चाची ने कम प्रयास नहीं किया। घर में गाय पाला। गोबर उठाया। शीत, गर्मी, सर्दी की परवाह किए बिना आस-पास की पहाड़ियाँ, जंगल, खेतों की मेड़ें आदि स्थानों में जाकर गायों के लिए चारा तलाशा। गाय का चारा-भूसा खरीदने स्वयं बाजार गई। अपनी पीठ पर बोझ उठाया। होटलों में दूध बेचकर बेटों की पढ़ाई के लिए पैसों का जुगाड़ किया। जब बेटे अच्छे अंकों में पास होने का समाचार ले आते उनके सारे कष्ट छूमंतर हो जाते। इस प्रकार कट्टेल दंपति का सर समाज में ऊँचा उठता चला गया।  

आज दोनों के मन में जोरदार भूकंप चल रहा है। कलेजा जैसे खंड-खंड हो रहा है। पंचायत अब तक कोई निर्णय नहीं सुना पाई। बेटों की मजबूरी के दुखड़ों की छेद में निर्णय का पेंच अटक गया था।  चाची को लगा अब पंचायत उनके चारों बेटों को दोषी करार देगी। वे प्रधान पंच के कुछ कहने से पहले अपने कलेजे पर पत्थर रखते हुए सबके सामने विनय की मुद्रा में खड़ी होकर कहने लगीं -

“आप लोगों ने हमारे घर में आने का कष्ट उठाकर हम पर बड़ी कृपा की है। इसके लिए मैं पंचको विशेष धन्यवाद देती हूँ। आज फैसला नहीं हो पाया। इस विषय में आज रात को हम फिर पारिवारिक विचार-विमर्श करेंगे। उसके बाद आप लोगों को सूचित करेंगे।“ 

चाची के इन शब्दों के साथ पंचायत बर्खास्त हो गई। पंच परमेश्वर घर चले गए। 

पीड़ा बाँटने पर नहीं बँटती। इस प्रयास में और घनी हो जाती है। चाचा-चाची को स्थिति का आभास हो गया। बेटे और बहू सब मौन थे। यह मौनता भी बहुत कुछ बयाँ कर रही थी। इस खामोशी के आइने में भविष्य का प्रतिबिंब साफ नज़र आ रहा था। 

दिए गए वचन के अनुसार अगले दिन पंचों को चाची ने बताया - “मेरे चारों बेटे किसी न किसी मजबुरी में जी रहे हैं। अपने माता-पिता को लेकर वे परेशान न हों। हम अपने बनाए इसी पुराने घर में रहेंगे। अभी हाथ-पाँव चल रहे हैं। कोई समस्या नहीं है। बेटे हम दोनों को अपने साथ रखने में असमर्थ हैं लेकिन हम दोनों पूरे परिवार को साथ रखने में समर्थ हैं। इसलिए हम दोनों ने यह निर्णय लिया कि हम किसी पर बोझ नहीं बनेंगे। हमारे बेटे-बहू कभी भी हमारे पास आ सकते हैं। इससे हमें बड़ी खुशी मिलेगी।

कट्टेलनी चाची ने पल-पल दस्तक दे रहा बुढापा कल किस लाठी के सहारे कटेगा - इस प्रश्न को अंजान भविष्य के हाथों में सौंप दिया। मन की पीड़ा मन में छुपाते हुए होंठों पर मुस्कान खिलाने वाली चाची ने खुदको हर चुनौती झेलने के लिए तैयार कर लिया। कट्टेल दंपती के इस निर्णय से उनके बहू-बेटों को क्या मिला, यह नहीं कह सकते लेकिन उन असहाय माता-पिता को जीने का हौसला जरूर मिल गया, जो बिना किसी सहारे अपना बुढ़ापा काट रहे थे। 

एक्काइसौं शताब्दी र मणिपुरेली नेपाली कविता

 

 

एक्काइसौं शताब्दी र मणिपुरेली नेपाली कविता




                           डा.गोमा देवी शर्मा

                           सातगाउँ,दलबारी

 

       तुलाचन आलेले साहित्यको जग बसालेको भूमि मणिपुर विभिन्न सम-विषम परिस्थितिहरूसँग जुझ्दै आएता पनि नेपाली भाषा-साहित्यको विकासमा पछि परेको छ भन्न ठ्याम्मै मिल्दैन। नेती, सन्देश, विरुआ,नारदगंगा, संकल्प, गोर्खाज्योति, सिरोई सिर्जना जस्ता पत्रपत्रिकाहरूले यस भेकको नेपाली साहित्यको विकासमा ठूलो भूमिका निभाएका छन्। नेपाली साहित्य परिषद, गोर्खा ज्योति प्रकाशन, सिरोइ सिर्जना परिवार वर्तमानमा मणिपुरको नेपाली साहित्य विकासमा संलग्न संस्थाहरू हुन्। आत्माराम मगर, चन्द्रेश्वर दुबे, आशारानी राई, अनिरूद्ध गौतम, सीताराम लम्साल जस्ता कवि-लेखकहरूले आफ्नो रगत-पसिनाले सिँचेको मणिपुरेली नेपाली साहित्यले एक्काइसौं शताब्दिसम्म आइपुग्दा विशाल आकार लिइसकेको छ। यस भेकका कविहरू बदलिँदो समय अनुरूप विभिन्न प्रवृत्तिहरूलाई आफ्नो विषयवस्तु बनाउँदै साहित्यको भण्डार बरने काममा संलग्न देखिन्छन्। यस लेखमा सन् 2001 बाट यता देखिएका यस भेकका नेपाली कवि र कृतिहरूको परिचय जन्म मितिक्रमको आधारमा प्रदान गर्ने प्रयास गरिएको छ। -

पदमबहादुर राई ओल्ड ब्वाय

       पदमबहादुर राई ओल्ड ब्वायको जन्म 5 अगस्त 1930 मा मणिपुरको तमेङलोङमा भएको थियो। यिनकी माताको नाम बुद्धिमाया राई र पिताको नाम दलभञ्जन राई थियो। बी.कमसम्म शिक्षा प्राप्त गरेका यिनी लामो समयसम्म भूटान अधिराज्यमा अन्डर सेक्रेटरीको रूपमा कार्यरत थिए। यिनी लामो समयसम्म नेपाली साहित्य सदन काङ्लातोंग्बी र नेपाली राइटर्स फोरमसँग संलग्न थिए। यिनले संकल्प साथै मञ्जरी जस्ता पत्रिकाको सम्पादन गरे। यि धेरै राम्रा गीतकार र भजन रचनाकार पनि थिए। साहित्यक सेवाका लागि यिनलाई अरूगी साहित्यिक संस्था दार्जिलिङले अरूगी पुरस्कारले सम्मानित गऱ्यो। यिनी मणिपुरमा प्रथम गीति एलबम हाम्रो गीतमाला बनाउने प्रथम

असंख्य रचनाहरू पत्र-पत्रिकामा यत्र तत्र प्रकाशित भए तापनि यिनको मात्र एउटा काव्य कृति कस्तूरी सन् 2007 मा प्रकाशित भयो।

कस्तूरी सङ्कलनमा 30 वटा कविताहरू सङ्कलित छन्। ईश्वर वन्दना, सामाजिक कुरीति, भाषाप्रेम, उपदेश, आमाको ममता, जागृति, प्रकृतिप्रेम आदि विषयहरू संस्कृतनिष्ठ नेपाली भाषामा कलात्मक ढङ्गले व्यक्तिएका पाइन्छन्। यि कविताहरूमा प्रशस्त मात्रामा अलङ्कारहरूको प्रयोग देख्न पाइन्छ। कलात्मक शब्दप्रयोग ध्वन्यात्मकता, र गेयताले परिपूर्ण कविताहरूको आनन्द पाठकहरूले तलको कवितामा सहजै पाउन सक्दछन् -

रिमी झिमी रिमि झिमि पानी पर्यो / टपर टुपुर मधुर तालमा / वन उपवन नाची उठ्यो

झुमी-झुमी मयूर चालमा। / लचक लचक सौदामिनी लच्कियो / बादल बीच मृदंग नादमा,

अम्बरबाट मोती बर्स्यो /  शीतल सुधा धरती माझमा। 1

पं. कृष्णप्रसाद काफ्ले

पंडित कृष्णप्रसाद काफ्लेको जन्म 10 मई सन् 1934 मा चारहजारे मणिपुरमा भएको थियो। स्वर्गीय देवका देवी र स्व. धर्मानन्द काफ्लेका सुपुत्र कृष्णप्रसादले ज्योतिष शास्त्रमा शास्त्री, श्री नेपाली संस्कृत विद्यालय, मङ्गलगौरी वाराणसीबाट उत्तीर्ण गरे। मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, भारत सरकारबाट पंडितको उपाधि प्राप्त गरेका यिनले उत्तर भारत स्थित तीर्थस्थलको यात्रा तीन पटक गरिसकेका छन्।

रचना

मनका खुड़का (1988), श्राद्ध मञ्जरी (1991) मानवता (2014)

 

कृष्णप्रसाद काफ्लेका सबै रचनाहरू तुकान्त पद्धतिमा रचिएका छन्। मानवता सबै प्रकारका पाठकहरूका लागि ग्राह्य काव्यकृति हो। मानव स्वभाव, संस्कृतिको महत्व, गौ महिमा, गौपूजन, नेपाली भाषा, आदि कविता, भानुभक्ताचार्यको जीवनी, पहिराको सवाई, कालचक्र, लोभ र अभिमान आदि यस कृतिमा समावेश विषयहरू हुन्।

यस काव्यमा आदिकवि भानुभक्ताचार्यको जीवनी बड़ो रोचक शैलीमा प्रस्तुत गरिएको छ। सवाई परम्परालाई अघि बढ़ाउँदै रचिएको पैह्रोको सवाई दर्शनीय छ।  यथा -

यस्तो दृश्य हेर्दै थिए खबर आयो अर्को, / माउमा पैह्रो गई नाश गर्यो घरको।

रस्ता माथि भत्किएर झरिहाल्यो पैह्रो, / डिम्मापुर जानेबाटो पारि दियो गैरो।

भत्के घर ग्वाली याक्सा गन्दा खेरि अस्सी, / धेरै बगे गाई गोरू सुंगूर कुखुरा खसी।

गन्ति गर्न पाइएन आपदको बेला, / सुरक्षित जगामा मानिस भए भेला। 2

चूडामणि खरेल

       चूडामणि खरेलको जन्म 30 जून 1940मा माता गंगादेवी खरेल र पिता श्रीकृपानन्द खरेलको पुत्ररूपमा काङ्ग्लातोंबीमा भएको हो। यिनी लामो समयसम्म काङ्ग्लातोंबी ग्राम पञ्चायतका भूतपूर्व प्रधानपञ्चको रूपमा जनसेवा गरे। यिनी विष्णु, शिव, दुर्गा पाञ्चायन मन्दिरका सभापति, काङ्ग्लातोंबी हाइस्कूलका सभापति, गोर्खा सुधारक संघ मणिपुरका सल्लाहकार जस्ता गरिमामय पदहरूमा रहेर सामाजिक सेवामा कार्यरत छन्। यिनले धेरै अघिदेखि छन्द र लयमा कविताहरू लेख्दै आएका छन्। उनको एउटा काव्य-कृति प्रतिबिम्ब मणिपुरको सन् 2018मा प्रकाशित भएको छ।

       प्रतिबिम्ब मणिपुरको एउटा छन्दलयमा लेखिएको काव्यिक इतिहासग्रन्थ हो। यसले मणिपुरको अतीत र वर्तमानसँगै सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक र साहित्यिक गतिविधिलाई आफ्नो विषयवस्तु बनाएको देखिन्छ। यसमा पद्यमा मणिपुरेली नेपाली भाषीहरूको ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, नेपाली र मणिपुर राजदरबार बीच अन्तर्सम्बन्ध, ब्रिटिशकालीन नेपाली भाषी जनजीवन, बसोवासका लागि सरकारी अनुमति, देशका निम्ति शहीद भएका सपूतहरूको परिचय, नेपालीभाषी बसेका क्षेत्रहरूको परिचय, मणिपुरका विभिन्न क्षेत्रमा अग्रणी व्यक्तित्वहरूको परिचय, मौलिक रचना र स्ववंशको जानकारी आदि विषयवस्तु पाइन्छन्। बुधचन्द्र महाराज र नेपाली रानी ईश्वरीदेवीको कविले आफ्ना आँखाले देखेको जिउँदो इतिहास निम्न शब्दहरूमा देख्न पाइन्छ-

मणिपुरका केहि कुरा लेख्ने इच्छा भयो। / मणिपुरको इतिहास तिर मन गयो।।

मणिपुरका राजाहरू धेरै अघि थिए। / गोर्खालीले जानेका चैं बुधचन्द्र भए।।

बुधचन्द्र महाराज कांग्लातोङ्बी माहाँ। / आउँदा खेरि सँगै आउँथिन् महारानी यहाँ।।

धर्मविनोदजीका घरभित्र बसी। / राजारानी दुवै बस्थे धेरैबेर हाँसी। 3

आलोक गौतम

       आलोक गौतमको जन्म सन् 1947 नोभेम्बर 11 मा मणिपुर अन्तर्गत कालापहाड़ गाँउमा भएको हो। साधारण कृषक परिवारमा जन्म लिएका गौतमले स्नातक सम्मको शिक्षा प्राप्त गरे। यी कवि शिरोमणि लेखनाथ पौडे़लको काव्य प्रतिभाबाट प्रेरित छन्। सन् 1966 देखि नै उनले फुटकर रूपमा कविता रचना गर्न थालेका थिए। सन् 1970 बाट यिनले गोर्खा विद्यार्थी सङ्गठन मणिपुरको मुखपत्र सन्देशको सम्पादन कार्य गर्न थाले। यसका साथै सन् 1985 देखि 2004 सम्म नेपाली साहित्य परिषद मणिपुरको अध्यक्ष पदमा रहे। गौतम एकजना कुशल सिने कलाकार र पटकथा लेखक पनि हुन्। आलोक गौतमको अहिलेसम्म एउटा मात्रै काव्य सङ्ग्रह मान्छे भित्रको मान्छे बोल्छ (2007) प्रकाशित छ। यिनका कवितामा वर्तमान मानवका अन्तरपीड़ालाई मार्मिक रूपमा उद्घाटन गरिएको छ। वर्तमानको समाजभन्दा अतीतको समाजमा निष्छलता र पवित्रता देख्ने कवि गौतम वर्तमानको समयमा मानवीय प्रवृत्ति सुधार्नु पर्ने सुधारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त गर्दछन्। जातीय चेतना, भूमण्डलीकरणको विरोध, भोगवादको विरोध, अस्तित्ववादी चिन्तन, अध्यात्मिक चिन्तन, युगबोध, भाषिक सरलता आदि यिनका काव्यका अन्य विशेषताहरू हुन्। एउटा उदाहरण स्वरूप -

संहार माग्छु एकचोटि फेरि / दन दन दन्कियोस सारा भूतल

सभ्यताले जन्माएका समस्त प्रदूषणहरू एक फेर फेरि / निर्मल बनून

आजको यो पृथ्वी / साम्राज्य बनोस खरानीको

अनि / प्रलय पछाड़ी झुल्किने / सूर्यको पछिल्लो किरणले

एउटा नवजात शिशु जन्माओस / ओजस्वी

लगत्तै उदाउने पूर्ण चन्द्रको गर्भबाट / एउटी कन्या जन्मून

शीतल सौम्या, सच्चरित्रा / अनि त्यहाँबाट / अर्को सुस्वस्थ

नया सृष्टिको श्रीगणेश होस / अतिको चारबाट मुक्तिको याचना

सर्व प्रथम म संहार माग्छु / एक चोटी फेरि। 4

 

खत्री कुमार

खत्री कुमारको जन्म 1 जुलार्इ सन् 1947 मा स्वर्गीय यशोदा देवी र स्वर्गीय हर्कबहादुर खत्रीको घरमा तोरीबारी मणिपुरमा भएको थियो। यिनको प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा तोरीबारीमै सम्पन्न गरे पश्चात यिनी भारतीय सीमा सुरक्षा बलमा सैनिक बन्न पुगे। जीवनको लामो समयसम्म भारत माताको सेवा गरेपछि यिनले अवकाश प्राप्त गरे। सन् 2019 मा यिनको निधन भयो।

खत्री कुमारको एउटा कविता सङ्कलन प्रकृति र मान्छे गोर्खा ज्योति प्रकाशन मार्फत सन् 2014 मा प्रकाशित भयो। यसमा 107 वटा कविताहरू सङ्कलित छन् ।

मानिस हुनुको चेतना, प्रकृति प्रेम, जीवन जगतका तथ्यहरू, उपदेश, नशा सेवनबाट हुने हानि, ईश्वरप्रति असीम आस्था, पर्यावरण चेतना, आत्मचेतना जस्ता भावहरूको अभिव्यक्ति पाइन्छ। यिनका कवितामा प्रकृति यत्र तत्र देख्न पाइन्छ। प्रकृति कतै आमा, कतै सहचरी र कतै ईश्वरीको रूपमा चित्रित भएको पाइन्छ-

ओ प्रकृति! तेरो सृजन कस्तो / के तेरै मन सुहाए जस्तो

यता सोच्छु उता हेर्छु / यो मेरो भनी रोज्छु

एक दिन मबाट सबै छरिन्छन् / तिनले कसैको झोली भरिन्छन्,

कहिले म तेरो गुण गाउँछु / यसैमा असीम सुख शान्ति पाउँछु

तेरो रूप तेरो रंग कस्तो । 5

खत्री कुमारका कवितामा नारीप्रति असीम श्रद्धा व्यक्त भएको पाइन्छ । कवि उसलार्इ परम्परागत धारणा अनुसार पुरूषकी दासी र हीन अबला नभएर सृष्टिकी आधार र पूजनीया मान्छन् -

स्रष्टाले सृजेको यस सृष्टिमा / मात्र मानव जगतमा न भएर

सबै प्राणी जगतमा अद्भुत छौ / बिना तिमी त्यस स्रष्टाको

सृष्टिनै चल्न सक्दैन। / .....................

 सारा संसारलार्इ जनार्इदेउ /  जुन मानव समाजमा नारीको मान हुँदैन

त्यो समाज लङ्गड़ो हुन्छ / यो शाश्वत सत्य बतार्इ देउ । 6

        सरल र शिष्ट नेपाली भाषा साथै आंशिक संस्कृत र हिन्दीका शब्दहरूको प्रयोग खत्री कुमारका कवितामा देख्न पाइन्छ। गद्यात्मक अभिव्यक्ति र प्रवाहमयताको दर्शन पनि पाठकले यिनका कवितामा प्राप्त गर्न सक्दछन्।

कमल थापाप्रकाश

       कमल थापा प्रकाशको जन्म 27 सेप्टेम्बर 1948 मा इम्फाल, मणिपुरमा भएको थियो। यिनकी माताको नाम पानमाया र पिताको नाम सुखराज थियो। पत्नी वीरा थापा र सात जना सन्तान छाडि सन् 1990 मा यिनी स्वर्गवासी हुन पुगे।

सन् साठीको दशकमा मणिपुर प्रान्तमा नेपाली भाषाको प्रचार-प्रसार गर्नमा यिनको ठूलो भूमिका रहेको छ। सन् 1967 मा सन्देश मासिक पत्रिकाको सम्पादकको रूपमा नेपाली पत्रकारिता जगतमा ओर्लिने कमल थापा प्रकाश मणिपुरमा मुद्रित पत्रकारिता सुरु गर्ने प्रथम पत्रकार हुन्। सन् 1973सम्ममा यिनी नेपाली साहित्यको केन्द्रबिन्दुको रूपमा देखा परेका थिए। यसै क्रममा काङ्ग्लातोंग्बीबाटै बिरूवा नामक मासिक पत्रिका यिनकै सम्पादनमा निस्किएको थियो। कमल थापा एउटा सशक्त कवि, पत्रकार, गीतकार र नाटककार थिए।

आह चाह कमल थापा प्रकाशको मरणोपरान्त प्रकाशित कविता सड़्गालो हो। यसमा 66 वटा कविता र 29 वटा गीतहरू समावेश छन्।

कमल थापाका कविताहरूले प्रगतिशील विचारधारा बोकेका छन्। जीवन मृत्युलार्इ अभिशाप ठान्ने हाम्रो विचारधारालार्इ यिनी नवीन ढाँचामा प्रस्तुत गर्दै  उनी लेख्छन् -

जीवन मृत्यु / अभिशाप होइन

यो एक वरदान / मानव जातिले पाएको । 7

आफ्ना सन्ततिलार्इ सही बाटो अङ्गाल्न कविले युवाशक्तिलार्इ उर्जाको सकारात्मक प्रयोग गरि जातिको उत्थान गर्ने ओजपूर्ण शैलीमा दिएको प्रेरक अभिव्यक्ति दर्शनीय छ -

तिम्रो जोश / समुद्रबाट उठेको लहरहरू जस्तै हुनुपर्छ ।

तिम्रो उमंगले / आँधी बेहेरीको ज्वार भाटालार्इ थिच्नुपर्छ ।

तिम्रो उन्नतिले / आकाशका तारा टिप्न सकेको हुनु पर्छ ।

तिम्रो प्रेरणाले / भविष्यको निर्माण गरिएको हुनुपर्छ।

तिम्रो सान्त्वनाले / हामिभित्रको अस्तित्वलार्इ सजाएको हुनुपर्छ।

तिम्रो उत्साहले / सगरमाथाभन्दा बढी उच्च पर्वत चढ़ेको हुनुपर्छं।

तिम्रो शिक्षाले / हाम्रो आत्मा परमात्मालार्इ चिनिदिएको हुनुपर्छ।

तिम्रो आवाजले / हामिलार्इ आह्वान गरिदिएको हुनुपर्छ।

तिम्रो क्रान्तिले / हाम्रो कर्तव्यलार्इ झक्झक्याएको हुनुपर्छ

तिम्रो प्रोत्साहनले / प्रभातको उज्ज्वल किरण छरिदिएको हुनुपर्छ। 8

 

घनश्याम कोइराला

कालापहाड, मणिपुरमा 4 सेप्टेम्बर सन् 1962 मा जन्म लिने घनश्याम कोइराला एउटा उदीयमान साहित्यकार हुन्। माता सरस्वती देवी र पिता लछुमन कोइरालाले डी.एम. कॉलेज अफ आर्ट्सबाट स्नातक सम्मको शिक्षा प्राप्त गरे। कालापहाड सरस्वती स्कूलका प्रधानाचार्यको पदबाट अवकाशप्राप्त शिक्षक हुन्। यिनले लेखेका नेपाली गीतको अडियो क्यासेट यो हाँसो त्यो आँसु सन् 1988 मा निस्कियो। घनश्याम कोर्इरालाका दुइटा कविताकृति प्रकाशित छन् ।

रचना -  मिस्कल (कविता सं, 2011) सृष्टिका दुर्इ धार (खण्डकाव्य 2012)

मिस्कलमा 71 वटा कविताहरू सङ्कलित छन्। यिनका कवितामा अस्तित्व चेतना, सकारात्मक सोच, प्रेम परिणयको अलौकिक अनुभूति, प्रकृति, विसंगतिहरू माझ संगतिको खोजी आदि विषयहरू कलात्मक ढङ्गले व्यक्तिएका छन्। जीवन जगतको आधार मानिने प्रेमको छुट्टै चित्रण भएको यहाँ देख्न पाइन्छ -

म सत्य हूँला / सत्यलार्इ अनवरत

आस्थाको अछेताले / पूजन गरि रहूँ लाग्छ

सौन्दर्यलार्इ / हृदय-नयनले अनन्त

अभिवादन गरि रहूँ  लाग्छ / संसारको अक्षयकोश बनोस

प्रेम /  सुस्वास्थ / अनुपम / स्निग्धताको बन्धन । 9  

जीवनको जीजिविषा तथा केही प्राप्तिका लागि प्रत्येक मनुष्य सङ्घर्षरत देखिन्छ। कवि पनि हारेको छैन, कतै खिन्नता, कतै दुखेसो भए तापनि सङ्घर्ष पथमा अविरल गतिमा अघि बढ़्न कटिबद्ध रहेको देखिन्छ। सुन्दर भावाभिव्यक्तिसँगै बेजोड़ भाषिक विन्यास घनश्याम कोइरालाका कविताको विशेषता हो -

बौरिएर एक फेर /  राज गर्छौ भने

हत्केलामा ज्यान राखि / भिड़ी दिनेछु यसपाली

सुर्रिएर हुर्रिएर फ्यातुलोको फ्यातुलै / तातोपारी सुताउँदै ओस्सिएको धेरै भो

झुत्तिएर, लत्रिएर मात्तिएको मात्तियै / छुद्धि खेल्दै तीनचित भर्इ चिप्लिएको धेरै भो। 10

दोस्रो कृति सृष्टिका दुर्इ धारमा कथ्यलार्इ नाटकीय रूपमा प्रस्तुत गरिएको छ।यसमा बढ्दो औद्योगिकीकरणको चपेटमा परेका उत्तरआधुनिक पीढ़ीको प्रकृतिप्रतिको उदासीनता र त्यस प्रवृत्तिले पर्यावरणमाथि आज आइपरेका समस्याहरूको सुन्दर चित्रण भएको पाठकले देख्न पाउँछन्।

नेत्रप्रसाद अधिकारी

नेत्रप्रसाद अधिकारीको जन्म सन् 1963 मा कौबुलैखा मणिपुरमा भएको हो। माता तारादेवी र पिता रामनाथका पुत्र यिनले मैट्रिकसम्मको परीक्षा उत्तीर्ण गरेपछि शिक्षालार्इ विराम दिएर निजी जीवनमा लामो अन्तरालसम्म शिक्षण पेशामा संलग्न भए।

मणिपुर प्रान्तबाट निस्किने विभिन्न पत्रपत्रिकामा यिनका केहि कविताहरू प्रकाशित भएको देखिन्छ। तीन हरफे कविता लेख्नमा यिनी खप्पिस छन्। कृतिको रूपमा यिनको कलिला बेलपत्रहरू (2009) प्रकाशित छ। यसमा सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, मानिसको व्यवहार आदि विषयका कविताहरू समावेश छन्। शब्दको मितव्ययिता यिनका कविताका मूल प्रवृत्ति हो। केही उदाहरण स्वरूप -

                          


उपचार

       न काट काँड़ालार्इ भयंकर शस्त्रले

       काँड़ो बिना काँड़ो निस्कँदैन । 11

                     राजनीति

       छि : किन घिनाउँछौ

       उसले रहस्य बुझेको छ

       बानी परेकालार्इ घिन लाग्दैन। 13 

                    

              रक्सी

       मने र रक्सी

       आन्द्रो गाँसेका

       घर भाँड़न। 12

                     लोभ

           भेलको माछा

           झोला थाप्दैछ

           घर बगी सक्यो। 14


सीतादेवी छेत्री

       सीतादेवी छेत्रीको जन्म 5 मई 1961 में माता स्व. तारादेवी लामिछाने एवं पिता स्व. गोपाल लामिछाने की पुत्री को रूपमा मणिपुरमा भएको हो। यिनी बी.ए. सम्म शिक्षित र पेशाले मणिपुर सरकार को अधीनिस्थ एउटी सरकारी शिक्षक हुन्। यिनी नेपाली साहित्य परिषद, मणिपुर, कांग्लातोंग्बी महिला समिति, भारतीय गोर्खा परिसंघ, एकल अभियान महिला विभाग जस्ता संगठनहरूमा में जडित भएर  सामाजिक-साहित्यक सेवा कार्यमा संलग्न छिन्। सीतादेवी छेत्री का दुइटा रचनाहरू प्रकाशित छन्-

रचना - एउटै धरामा (कविता संग्रह,2017) र मूल परेको छोरो (कथा संग्रह, 2018), चर्किएको मन (कथा संग्रह,2021)।

       सीतादेवीका कवितामा सहज अभिव्यक्ति, नारी प्रताड़नाको विरोध, सामाजिक विसंगतिप्रति व्यंग्य, प्रकृतिको उदात्त रूपको चित्रण, मातृभूमि प्रेम, गद्यात्मक अभिव्यक्ति, सरल नेपाल भाषाको प्रयोग जस्ता प्रवृत्तिहरू प्राप्त हुन्छन्।      मणिपुरेली नेपाली साहित्यको विकासमा योगदानलाई मध्यनजरमा राख्दै सीतादेवीलाई नेपाली साहित्य परिषद मणिपुरद्वारा सोमलक्ष्मी राई पुरस्कार साथै नेपाल अकादमी र जरा फाउण्डेशन, नेपाली साहित्य सभा असम, रटन अभियान सिक्किम, दमक कला साहित्य महोत्सव जस्ता साहित्यिक संस्थानहरूले सम्मानित गरिसकेका छन्।

कीर्तिमणि खतिवड़ा

       कीर्तिमणि खतिवड़ाको जन्म 5 मार्च 1971 मा चारहजारे मणिपुरमा भएको हो। माता रेणुका देवी र पिता खोमनाथका पुत्र कीर्तिमणिको शिक्षादीक्षा मणिपुरमा सम्पन्न भयो। यिनले बी.ए. र राष्ट्रभाषा हिन्दी रत्नसम्मको शिक्षा हासिल गरे बापत हालमा सरकारी शिक्षण पेशामा संलग्न छन्। 

       यिनका केहि फुटकर रचनाहरू मणिपुरी, नेपाली र हिन्दी भाषामा विभिन्न पत्रपत्रिकामा प्रकाशित छन्। कृतिको रूपमा कविता सङ्ग्रह सन् 2003 मा प्रकाशित भएको देखिन्छ।

       कविता सङ्ग्रह खण्डकाव्यको ढपमा रचिएको लामो कविता हो। यसमा समस्त सृष्टि, इतिहास, लोक विचार, सूक्ति आदिको प्रयोग गर्दै मानिसका सम्पूर्ण प्रवृत्तिहरूको विवेचना गर्ने प्रयास गरिएको छ। वेद वाक्य अहं ब्रह्मास्मि भन्ने वाक्यको समरूपबाट थालिएको कवितामा प्राचीन भारतीय संस्कृति र वर्तमान स्थिति, पश्चिमी संस्कृतिको प्रभाव, शास्त्रेतिहासको पुनर्मूल्याङ्कनको आवश्यकता, कोरा आदर्शको खुलासा, अङ्ग्रेजी दासत्वबाट मुक्त न भएको भारतीय मानसिकता, गोर्खा जातिलाई अरूले प्रयोग गरेका आदि विषयहरू संलग्न छन्। विषयवस्तुलाई प्रष्ट पार्नका लागि विभिन्न मिथकहरूको प्रयोग साथै अलङ्कारहरूको प्रयोग गरिएको पाइन्छ। उदाहरणस्वरूप केही पङक्तिहरू -

सोरसय पत्नीसँग राज गर्ने / सीता मातालाई त्याग गर्ने

बीच सड़कमा-चीरहरण गर्ने / अनुशरणका जमानामा

गांधारी र धृतराष्ट्रको अनुशरण गर्दै / साँचालाई झुठो साबित गर्ने -

आँखामा पट्टि बाँधेको / अर्थ-र-बाहुबलको दास-‘‘15

बसन्तीदेवी पौडेल

       बसन्तीदेवी पौडेलको जन्म माता स्व. धनमाया पौडेल र पिता स्व. जीवलाल पौडेलकी पुत्रीकी रूपमा 1971 मा पस्पति, मणिपुरमा भएको हो। यिनले बी.ए र हिन्दी रत्नसम्मको शिक्षा गरिन्। यिनी पेशाले सरकारी शिक्षिका हुन्। 80 को दशक देखिनै यिनी साहित्य क्षेत्रमा देखापरेकी रचनाकार हुन्। तर लामो समयसम्म बसन्तीदेवीका रचनाहरू पत्र-पत्रिकाहरूमा मात्रै सीमित रहे। उनका रचनाहरू पुस्तक रूपमा ढिलोगरि प्रकाशित भए।

रचना -  बिहानीको प्रतिक्षा (कविता सङ्ग्रह 2017), यात्रा: सलबलाएका अक्षरहरूसँग (कविता संग्रह, 2019), थोपा - थोपा जिन्दगी (गज़ल संग्रह, 2020)

       बसन्तीदेवी नेपाली साहित्य परिषद, मणिपुर, भारतीय गोर्खा परिसंघ, इमाखोल-अवाङ पोत्सङबम, मणिपुर, प्रोग्रेसिव राइटर एसोशिएसन, मणिपुर चैप्टर जस्ता साहित्यक संघ-संस्थाहरूमा आबद्ध रहेर साहित्य सेवामा संलग्न छिन्। उनका कविताहरूमा स्थानीय समस्या, जातिय अस्तित्व चिंतन, रहास्यानुभूति, वैयक्तिकता, शहरी जीवनको यथार्थ, यान्त्रिक युगका विषमताहरू, सहज अभिव्यक्ति जस्ता प्रवृत्तिहरू पाइन्छन्।

. सीताराम अधिकारी                              

. सीताराम अधिकारीको जन्म 10 दिसम्बर 1975 मा मणिपुरको कौब्रुलैखा गाउँमा भएको हो। पिता स्व. रामनाथ र माता देवका देवीका पुत्र सीतारामले मणिपुर विश्वविद्यालयबाट एम.. (हिन्दी) र पी.एच.डीको उपाधि साथै गुवाहाटी विश्वविद्यालयबाट एम. . नेपालीको डिग्री प्राप्त गरे। 2006 मा यिनले मासिक पत्रिका गोर्खा ज्योतिको सम्पादन र प्रकाशन आरम्भ गरे। सानो आकारमा निस्कने यस पत्रिकाले मणिपुरेली नेपाली साहित्यको विकासमा ठूलो भूमिका खेल्यो। सन् 2008 आफ्ना सहयोगीहरूसग मिली यिनले गोर्खा ज्योति प्रकाशनको सहयोगी समूहको गठन गरे। गोर्खा ज्योति प्रकाशनले आर्थिक अभावमा रहेका कलमकारहरूका रचनाहरू प्रकाशित गर्ने क्षेत्रमा ठूलो भूमिका निभायो। यस प्रकाशनले आजसम्म 100 भन्दा बढी पुस्तकहरू प्रकाशित गरिसकेको छ

रचना - आधुनिक मान्छे (कविता सङ्ग्रह, 2010), मनुष्य शरीर र स्वास्थ्य (2012) कर्तव्य पथ (अनुवाद नाटक, 2015)

आधुनिक मान्छे कविता सङ्ग्रहमा 66 वटा कविताहरू समावेश छन्। यस कृतिमा सङ्कलित कविताहरूले पाठकलाई मानिसका जीवनमा आपर्ने सुख-दुखसग मितेरी लाउँदै जीवनका कटुतम यथार्थहरूसग साइनो जोडे़को आभा दिन्छन्। वर्तमान युगीन विकृतिहरूलार्इ उदाङ्गो पार्नु नै यी कविताहरूको विशेषता हो। विभिन्न समस्याहरूले ग्रस्त जीवन बिताउन बाध्य आधुनिक मान्छेको छुट्टै अनुहारको दर्शन पाठकहरूले यस कृतिमा पाउँदछन् -

दैलाको कुनामा कुनै प्राणी

अपरिचित --- / सहजै मृत्यु शैय्यामा परेको

यस मृत्युको कारण / जान्न असमर्थ मानिस

मृतकलाई डस्टबीनमा हालेर / निकै पर लगेर फ्याँकिदिन्छ

यस शंकाले कि / यसको सडेको गन्धले

बिमारी फैलाउँछ / शङ्का निवारण गरिदिन्छ

ढुक्कले सुत्छ ।16

राहुल रार्इबोगीको            

राहुल रार्इबोगीकोको जन्म स्व. सोमलक्क्षी रार्इ (माक्रीहाङ) र जङ्गबहादुर रार्इ (माक्रीहाङ)का सुपुत्रको रूपमा 1984 मा मणिपुरको इराङमा भएको हो। यिनको बाल्यकाल त्यतै बित्यो। पारिवारिक समस्याले गर्दा यिनी केही समयसम्म सिक्किममा रहे। यिनी ऐले काङ्ग्लातोंग्बी तीसपरीका निवासी हुन्। साहित्यिक र सामाजिक कार्यमा रुचि राख्ने राहुल रार्इका तीनवटा कृतिहरू प्रकाशित भइसकेका छन् ।

रचना - एक जोड़ी परेवा (कथा सङ्ग्रह 2011), एक मुठी कविताहरू (कविता सङ्ग्रह 2013) र मेरा अनुभूतिहरू (कथा सङ्ग्रह 2014), कालो अक्षर (कविता सङ्ग्रह)।

राहुल राईका कविताहरूमा मानिसले भोगेका सुख-दुख, पीर-मार्का, गरीबी, ठूला बाबूहरूको कुव्यवहार, वैयक्तिकता आदि देख्न पाइन्छ। वैयक्तिक लाचारीको एउटा उदाहरण द्रष्टव्य छ -

घोटिएर रात दिन दुर्इ गाँस जुटाउँछु / पसीना बटुलेर रमाउँछु

भार्इहरू खाने बेलामा आउँछन / केरम गोटीसंग रमाउँछन् । 17

कताकता विपनीको दुख वेदनादेखि हताश भएर सपनाको दुनियामा पलायन गरे जस्तो पनि देखिन्छ -

सपनाको दुनिया कत्ति रमाइलो / सबै आफ्नो अंगालोमा अंगालेर

आफ्नै मनमा सम्हालेर / राखौं जस्तो। 18

 

दीपक पन्थ

दीपक पन्थको जन्म 12 मार्च 1989 मा इराङ प्रान्तमा भएको हो। यिनले स्थानीय स्कूलबाट मैट्रिक उत्तीर्ण गरे पश्चात प्रसिडेंसी कलेज, मोटबुड़्बाट बी., मणिपुर विश्व विद्यालयबाट एम.. हिन्दी र बीएडको परीक्षा उत्तीर्ण गरे। हालमा यिनी दमदेर्इ क्रिश्चियन कलेजमा अध्यापन गर्दैछन्।

यिनको रचना पूर्णिमाको जून  (2008) गजल सङ्ग्रह प्रकाशित छ। यो सङ्ग्रह मणिपुर प्रान्तबाट निस्किने प्रथम गजल सङ्ग्रह हो। यसमा विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक विषयहरूका गजलहरू साधारण नेपाली भाषामा रचिएका छन्। एउटा उदाहरण द्रष्टव्य छ -

बन्दुकबाट छुटेका गोलीको विश्वास हुन्न / राजनीतिमा नेताको विश्वास हुन्न।

बस्नुहुन्न हात बाँधी गर्ने काम गर्दै गरौं / कहिल्यै पनि न आउने भोलीको विश्वास हुन्न।

बन्नु पर्छ असल मान्छे दुर्इ दिनको जिन्दगीमा/ गुण्डागर्दी गर्दै हिंड़ने टोलीको विश्वास हुन्न। 19

यस कृति बाहेक दीपक पन्थको धार्मिक प्रश्नोत्तरी पुस्तक मन्थन सन् 2011 मा नेपाली संस्कृति सुरक्षा परिषद मणिपुरबाट प्रकाशित भयो। यस कृतिमा गीता, महाभारत, रामायण आदि धर्मग्रन्थसँग सम्बन्धित 1,111 प्रश्नहरू समावेश छन्।

सृष्टि पौड्याल

सृष्टि पौड्यालको जन्म 15 फरवरी 1991 मा चारहजारे मणिपुरमा भएको हो। माता पम्फादेवी र पिता मनप्रसाद पौड्यालकी सुपुत्री सृष्टिले बी.एससी र बी.एड सम्मको शिक्षा प्राप्त गरे वापत सनातन संस्कृत विद्यालय, चारहजारेमा शिक्षिकाको रूपमा कार्यरत छिन्। विभिन्न पत्र-पत्रिकामा थुप्रै रचनाहरू प्रकाशित गराएर साहित्यिक यात्रामा अघि बढ़ने क्रममा सृष्टिको एउटा कविता सङ्ग्रह गुनासो सन् 2014 मा नेपाली साहित्य परिषद मणिपुरले प्रकाशमा ल्याएको छ।

गुनासोमा 64 वटा कविताहरू सङ्कलित छन्। सबै कविताहरू लघु आकारका छन्। सृष्टिका कवितामा नारीवादी चेतना पर्याप्त मात्रामा देख्न पाइन्छ। स्वयं नारी हुनाका नाताले पुरूषवादी समाजमा आफ्नो अस्तित्व अघि राख्दै नारी हीन हैन भन्ने धारणाप्रति प्रहार गर्दै उनी भन्छिन् -

नारी अबला होइन  / बला अतिबला हुँदै

अब महाबला बन्नु पर्दछ / बछेन्द्री, इन्दिरा, प्रतिभा

फेरि बन्नु पर्छ नारी/ लक्ष्मी र सरस्वतीको महिमा

आफैं जगाउनु पर्छ नारी । 20

सृष्टिका कवितामा प्राकृतिक छटा विभिन्न रूपमा देख्न पान्छ। ऋतुराज बसन्त, हिँउद आदि कविताले प्रकृतिसँग मानवको सम्बन्ध देखाउँछ भने मणिपुर, कौब्रु आदि कविताले मातृभूमि प्रेम व्यक्त गर्दछन्। जननी जन्मभूमि, हाम्रो देश भारत, सत्यमेव जयते, भारतीय संस्कृति कविताले भारत भूमिप्रेम दर्शाएका छन्।

       भाषिक पक्षलार्इ हेर्ने हो भने कविताको भाषा साधारण र सहज नेपाली भाषा हो। कवितामा अभिधेयार्थ मात्रै निहित छ। कतै कतै स्थानीय शब्दहरूको सटिक प्रयोग पनि भएको पाइन्छ।

फुटकर कवि

       वर्तमानमा कविता रचना क्षेत्रमा कुमार खतिवडा, राजेन राई, सूरज चापागार्इं, होमनाथ चापागार्इं, नवराज उप्रेती, सुमित प्रधान, रोशन दियाली, सुमित प्रधान, विमल दहाल, हर्कबहादुर लाम्गादे, रमेश खतिवडा आदि धेरै जाँगरिला रचनाकारका रूपमा देखापरेका छन्।  

प्रवृत्ति

यसकालका रचनाहरूमा गद्यात्मक अभिव्यक्तिको विशेषता पाइन्छ। उपदेश, यथार्थ चेतना, अस्तित्व चेतना, व्यवस्था प्रति क्रोध, अस्तित्व चेतना, जातिको दीनहीन दशा, अतिशय वैयक्तिकता यस कालका कविताक विषय देखिन्छन्। कवि कमल थापा प्रकाशका कवितामा जातीय चेतनाको उद्घोष देखिन्छ भने सङ्घर्षशीलता, नवीन रचनाको प्रेरणा र प्रकृति रक्षा कवि घनश्याम कोइरालाको काव्य वैशिष्ट्य हो। राहुल रार्इका कवितामा वैयक्तिकताको दर्शन पाइन्छ भने ड. सीताराम अधिकारीका कवितामा आधुनिकताको खोक्रोपन र व्यवस्थाप्रति आक्रोशको देख्न पाइन्छ। नारी चेतनाको प्रखर स्वर खत्री कुमारका, सीतादेवी र बसन्तीदेवी पौडेलका कवितामा देख्न पाइन्छ भने राष्ट्र गौरव र अन्य सामाजिक विषय कवयित्री सृष्टि पौड्यालका कविताको विषय हो। यस कालका कविताहरूमा नवीन काव्य शैलीको दर्शन पनि पाइन्छ। कवि घनश्याम कोइरालाको काव्य रचना सृष्टिका दुर्इ धार यसको सुन्दर उदाहरण हो। प्राय: सबै कविहरूले छन्दमुक्त अभिव्यक्ति दिएका छन्।

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सन्दर्भ :

 

1.      कस्तूरी- पदमबहादुर राई ओल्ट ब्वाय. पृ.40-41

2.      मानवता- कृष्णप्रसाद काफ्ले -            पृ.29

3.      प्रतिबिम्ब मणिपुरको - चूडामणि खरेल-           पृ.55

4.      मान्छेभित्रको मान्छे बोल्छ  - आलोक गौतम       पृ.15

5.      ओ प्रकृति - खत्री कुमार                       पृ. 15

6.      पूर्ववत्                                    पृ. 105

7.      आह चाह - कमल थापा प्रकाश                  पृ. 2

8.      पूर्ववत्                                    पृ. 10

9.      मिस्कल - घनश्याम कोर्इराला                   पृ. 39

10.    पूर्ववत्                                    पृ. 44

11.    कलिला बेलपत्रहरू - नेत्र प्रसाद अधिकारी          पृ. 6

12.    पूर्ववत्                                    पृ. 4

13.    पूर्ववत्                                    पृ. 29

14.    पूर्ववत्                                    पृ. 48

15.    म - कीर्तिमणि खतिवडा -                     पृ.7

16.    आधुनिक मान्छे - सीताराम अधिकारी             पृ. 18

17.    एक मुट्ठी कविता सङ्ग्रह - राहुल बोगीको रार्इ       पृ. 37

18.    पूर्ववत्                                     पृ. 35

19.    पूर्णिमाको जुन - दीपक पन्थ                   पृ. 18

20.    गुनासो - सृष्टि पौड्याल                       पृ.  1

अन्य सहायक सन्दर्भ ग्रन्थ

 16. मणिपुरमा नेपाली जनजीवन- मुक्ति गौतम,दो.सं.2018

 17. मणिपुरमा नेपाली साहित्य :एक अध्ययन- डा.गोमा देवी शर्मा, 2016

 18. भारतीय नेपाली साहित्यको विश्लेषणात्मक इतिहास - डा.गोमा देवी शर्मा, 2018

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